वीर चला है घर से अपने पथ पर चलने को, पीछे छोढ़ चला है जीवन के अपने रत्नो को , रोज़ है चलता सुबह सवेरे दिन का बोझ उठाने को,
घूँट घूँट सपनो को पीता, बच्चों के पंख बढ़ाने को,
कहीं किसी से बातें सुनता अप्रिय शब्दों की जाली से,
रोज़ है कड़वे घूँट वो पीता पेट की आग बुझाने को,
जब थक जाता दो घड़ी सुस्ताने को,
अपने ही हाथों अँगोछा लेकर पोंछे अपनी ही पेशानी को,
ग़र खड़ा हो कहीं जो मुश्किल सीना ताने आगे से ,
उसके आगे बहुशाली बनकर वीर खड़ा हर क़ोने में!
वीर रस की कई कहानी कहता हर कोई सरहद पर,
घर से निकलो झांको अपने बगलों में,
घर के आगे सरहद होगी, वीर मिलेंगे चौराहों पे,
कहीं खड़े हैं सिर को बांधे, तो कहीं है हाथों को,
वीर सिपाही खड़ा यहीं है, लड़ता “समता” के पैमानो से!
कोई कहता आगे बढ़ जा, कोई खींचे बाहों से
नहीं है आसां किसी जंग से, “जीवन का जीवन जीने में”
सरहद पर खड़ा वीर है, लड़ता केवल दुश्मन से
जीवन के वीर तो लड़ते है अपने ही खून के नामों से
नहीं है कहता वीर कोई उनको, ना ही तमग़े मिलते हैं
ना कोई कहता कविता उनपर
मरते लड़कर जो अपने जीवन से!