सूरज से चला, धरा पर ढला
कोंपल बना, गुलों में पला
नैनों में बसा, सपनो में सजा
दूर कहीं एक चाँद खिला
लो उम्मीद की किरण फिर से चला
कहीं हंसी, कहीं कोलाहल
कहीं उदासी, कहीं आंसू
कहीं सुबह की महक
कहीं साँझ की झलक
कहीं अपनी ही ख्वाहिशों का शोर
कहीं दूर तक सिर्फ़ भीड़ का मखलोल
वो देखो सूरज फिर निकला
लो उम्मीद की किरण फिर से चला
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