Wednesday, April 5, 2023

वो चला था कल घर की ओर

 वो चला था कल घर की ओर

मन ही मन सोचता हुआ 
घर जाऊँगा माँ से कहूँगा रोटी खिला
भागवान से कहूँगा आ बैठ कुछ अधूरी बातें करें
बालक को जी भर के देखूँगा, संग में लुका-छिपी खेलूँगा 
इसी उम्मीद पर चलता गया

संग दस थे राह में, कुछ चंद रह गए 
चलते चलते ना जाने कब थक गया
आँख लगी और सो गया 
सपनो में बस चलता चला गया 
इसी उम्मीद की किरण में
ना जाने वो कहाँ खो गया...

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