Wednesday, April 5, 2023

वक़्त निकल जाता है हाँ तब ये ख़याल आता है!!!

 जब वक़्त निकल जाता है तब ख़याल आता है,

जो हाथ बढ़ा देते तो आज ज़िंदगी बाहों में होती,
जो बढ़ के रोक लेते तो ख़ुशियाँ यूँ रूठी ना होती...

जब वक़्त निकल जाता है तब ख़याल आता है,
जो निगाहे यूँ सर्द ना होती तो आज तमन्नाएँ यूँ ज़र्द ना होती,
कुछ तो कहा होता की ज़ुबां यूँ ख़ामोश ना होती...

जब वक़्त निकल जाता है तब ख़याल आता है,
जो बारिशों को पिरोया होता तो ख़्वाबों की नदियाँ यूँ प्यासी ना होती,
जो रंगों को सुखाया ना होता तो अपना भी एक धनक होता...

जब वक़्त निकल जाता है तब ख़याल आता है,
जो तिनके ही बिखेरे ना होते तो घरोंदा आज भी उसी शाख़ पर होता,
जो कफ़न को “अपने” ख़ुद ही सिया ना होता तो वो किसी का दामन मेरा सरमाया ही होता...

जब वक़्त निकल जाता है तब ख़याल आता है,
कि जो नशे में प्याले यूँ तोड़े ही ना होते तो मयखानो ने यूँ मूँह मोड़ा ना होता,
जो मुट्ठी को बंद ही ना की होती तो वक़्त यूँ दरारों से फिसला ही ना होता...

वक़्त निकल जाता है हाँ तब ये ख़याल आता है!!!

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