भीगी भीगी रातें
कुछ हम कुछ तुम करो बातें
सुबह तक जागते रहें
कुछ तुम लो कुछ हम लें साँसे
ख़ुशबू उस रात की नमी तेरे हाथ की
कुछ हवा नरम सी थी कुछ साँसे गरम सी थी
दूर आसमाँ पर सितारों की बारिश
उस पर खिला वो चाँद
तेरे केसुओं की घटा से झांकती वो चाँदनी
कुछ कहने को तरसती तेरे लबों की वो खामोशी
कुछ शर्म तेरे गालों की, कुछ शरारत तेरे आँखों की
भीगी भीगी रातें
चलो फिर से तुम करो कुछ कुछ हम करें बातें
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And you said...