Wednesday, April 5, 2023

कांच की मिट्टी से बने ये रिश्ते

 कोई रिश्तों की दुहाई देता रहा 

कोई रिश्तों से रिहाई लेता रहा
देखो तो मुलायम छू लो तो खुश्क
कांच की मिट्टी से बने ये रिश्ते 

हर तरफ़ है इंसानी बसेरे 
ढूँढो एक तो निकले मकान घनेरे
लेकिन घरों के अंदर रहते 
बेजान रूठे ठंडे से लगते
कांच की मिट्टी के बने ये रिश्ते 

रगों से जिनकी बनते थे रिश्ते 
आज वहाँ सिर्फ़ नमक है बहते 
जिस्म भी सूखे रूह भी रूखे
आँखें भी हैं नमी के भूखे 
कांच की मिट्टी के बने ये रिश्ते

ना माँ का प्यार ना बच्चे का दुलार 
ना पिता का साथ ना भाई का हाथ 
सब कुछ है नोटों की बात 
साथ है सिर्फ़ जब तक देते वो हाथ
आख़िर कांच की मिट्टी के बने ये रिश्ते

ना मोहब्बत ना वफ़ाएँ
कौन किसका प्रीतम यहाँ पर
ज़िंदा यहाँ मुर्दा हो जाए 
खरा यहाँ कुछ चलता नहीं है
सबने सिर्फ़ हैं सोने के परत चढ़ाए
कांच की मिट्टी के बने ये रिश्ते
हाथ लगाओ बिखरते चले जाएँ

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