कोई रिश्तों की दुहाई देता रहा
कोई रिश्तों से रिहाई लेता रहा
देखो तो मुलायम छू लो तो खुश्क
कांच की मिट्टी से बने ये रिश्ते
हर तरफ़ है इंसानी बसेरे
ढूँढो एक तो निकले मकान घनेरे
लेकिन घरों के अंदर रहते
बेजान रूठे ठंडे से लगते
कांच की मिट्टी के बने ये रिश्ते
रगों से जिनकी बनते थे रिश्ते
आज वहाँ सिर्फ़ नमक है बहते
जिस्म भी सूखे रूह भी रूखे
आँखें भी हैं नमी के भूखे
कांच की मिट्टी के बने ये रिश्ते
ना माँ का प्यार ना बच्चे का दुलार
ना पिता का साथ ना भाई का हाथ
सब कुछ है नोटों की बात
साथ है सिर्फ़ जब तक देते वो हाथ
आख़िर कांच की मिट्टी के बने ये रिश्ते
ना मोहब्बत ना वफ़ाएँ
कौन किसका प्रीतम यहाँ पर
ज़िंदा यहाँ मुर्दा हो जाए
खरा यहाँ कुछ चलता नहीं है
सबने सिर्फ़ हैं सोने के परत चढ़ाए
कांच की मिट्टी के बने ये रिश्ते
हाथ लगाओ बिखरते चले जाएँ
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