Wednesday, April 5, 2023

अजनबी राही

देखे जो सपने साथ साथ वो जी ना सकें हम, 

कुछ नींद से ऐसे जागे कि सपने बिखर गए,
कुछ तेरी वो ख़ता कुछ मेरी वो वफ़ा,
ना जाने कब हम राही से कुछ अजनबी से बन गए!

सीने पर बोझ, तेरे इश्क़ का, लेकर के चलते रहे,
ना जाने कब वो मोहब्बत थम गए, और बोझ बढ़ते चले गए।
कभी जो मुड़ कर देखा भी तो धुंधला था इतना समाँ,
के अपने ही कातिल के साये को अपना मसीहा समझ लिए।
दिल की नादानी तो देखो कि जब माहजबिं ने दामन छुढ़ा लिया,
उसको भी उसकी मोहब्बत की अदायें ही समझ लिए!

चाहत की इतनी चाह थी कि ख़ूने दामन को लेकर के लड़खड़ाते रहे हम,
उसके हरेक ज़हर को मरहम ही समझ लिए, 
राही जो बनके चले थे हम कुछ अजनबी से हो लिए!

माना के तेरे साथ की चाहत बहुत थी लेकिन तेरे साथ की क़ीमत भी बहुत थी, 
पहले ही ज़ख़्म के बोझ थे बहुत, के और क़ीमत चुकाने की तहम्मुल ही नहीं थी।
टूटते हुए हौसलों में कुछ इतना भी ना बचा था, 
कि अपनी ही रूह को गिरवी रखके तेरे सदके ही कर देते!

राह थी वोहि लेकिन राही वो नहीं,
इतना टूट गए के अब तो, नए राह की गुंजाइश भी नहीं,
राही जो बन कर चले थे कुछ कदम, अब वो अजनबी ही हो लिए!!! अब वो अजनबी ही हो लिए!!!

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