यानी लाक्डाउन वाली हंसी
लेकिन सवाल यह है की किसकी हंसी?
हंसी तो फँसी वो हंसी?
या चल हंस ना बे वो वाली हंसी?
चलते चलते छाले पढ़ गए उस दर्द की हंसी?
या भूख से बिलखते बच्चे को हंसाने वाली हंसी?
या फिर उस सत्ता पर बैठे लाट साहिबों की हंसी
जो हंसे तो भी कहते है कमाल है साहब क्या हंसी है
इनके तो हंसने में भी देश प्रेम का रस है
बाक़ी सब तो लाक्डाउन में रोने का नाटक कर रहे हैं
असली देश सेवा तो यह भक्त कर रहे हैं!
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